हिंदी भाषा में कितने स्वर और कितने व्यंजन हैं?

किसी भी भाषा में स्वर और व्यंजनों का बहुत महत्त्व होता है। हिंदी भाषा में भी स्वर व्यंजनों का महत्त्वपूर्ण उपयोग होता है, यह व्याकरण का आधार माना जाता है। अंग्रेजी के स्वर व व्यंजनों का ध्यान अक्सर ज्यादातर लोगों को होता है लेकिन वहीँ हिंदी भाषा में कई बार इसका ज्ञान बच्चों को छोड़िये बड़ों को भी नहीं होता है। अगर आपको भी नहीं पता कि हिंदी भाषा में कितने स्वर और कितने व्यंजन हैं? तो यहाँ इसकी पूरी जानकारी दी गयी है –

हिंदी भाषा में कितने स्वर और कितने व्यंजन हैं?

मुख से निकली ध्वनियाँ ही हमारी भाषा का आधार है। मुख से निकली अलग अलग सार्थक ध्वनियाँ ही वर्ण कहलाती है। अर्थाथ हिंदी भाषा की सबसे छोटी इकाई को वर्ण कहते है। जैसे -अ, आ, इ, ई आदि। हिंदी में स्वर और व्यंजनो (वर्णो ) की कुल संख्या 52 होती है।  लेखन के आधार पर 56 वर्ण होते है। जिनसे 11 स्वर, 33 व्यंजन, 4 संयुक्त व्यंजन, 2 द्विगुण व्यंजन, 1 अनुस्वार और 1 विसर्ग होते है।

वर्णमाला (Alphabet)

किसी भी भाषा में प्रयुक्त होने वाले मूल ध्वनियों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते है। वर्णमाला के दो भाग होते है – स्वर तथा व्यंजन

1. स्वर किसे कहते है-

जिन वर्णों को स्वतन्त्र रूप से बोला जा सके उसे स्वर कहते हैं, या जिनके उच्चारण में हवा बिना किसी रूकावट के निकलती है। हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर है। जो इस प्रकार है अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ  | अनुस्वार , अनुनासिक , विसर्ग (:)

स्वरों के उच्चारण में लगने वाले समय आधार पर  उन्हें तीन भागों में बांटा गया है –

ह्रस्व स्वर(अ, इ, उ, ऋ ) दीर्घ (आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ )व प्लुप्त स्वर।

2. व्यंजन किसे कहते है – 

व्यंजन वह ध्वनिया है, जिनका पूर्ण उच्चरण करने के लिए स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है इनका उच्चारण करते समय हवा मुख के किसी भाग (कंठ, जीभ, दांत आदि)  टकराकर रुक रुक बाहर आती है।  हिंदी में इनकी संख्या 33 होती है। स्वरों की सहयता से उच्चारित उन ध्वनियों को  कहते है, जिन्हे बोलते समय मुँह के भीतर की हवा रूकावट के साथ बाहर निकलती है।

व्यंजन के भेद, vyanjan kitne hote hain?

  1. उच्चारण स्थान के आधार पर।
  2. श्वास की मात्रा के आधार पर
  3. .स्वर तंत्रियों में होने वाले कम्पन्न के आधार पर
  1. उच्चारण स्थान के आधार पर- इसके भी तीन भेद होते है

जिन वर्णो का उच्चारण मुख के विभन्न भागों जैसे कंठ, तालु, दन्त स्थानों पर जिह्वा के विशेष स्पर्श से किया जाता, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है, स्पर्श व्यंजन की संख्या 25 होती है जो निम्नलिखित है।

वर्ग व्यंजन स्पर्श व्यंजन 
क वर्ग क, ख, ग, घ, ङ (क़, ख़, ग़ )कंठ 
च वर्गच, छ, ज, झ, ञ (ज़, झ़)तालु 
ट वर्ग ट, ठ, ड, ढ, ण (ड़, ढ़)मूर्द्धा 
त वर्ग त, थ, द, ध, नदन्त 
प वर्ग प, फ, ब, भ, म (फ़)ओष्ठ 

अंत:स्थ व्यंजन – य, र, ल, व

ऊष्म व्यंजन – श, ष, स, ह

2. श्वास की मात्रा के आधार पर व्यंजन के दो भेद किये गए है –

अल्पप्राण और महाप्राण

  • अल्पप्राण – जिन व्यंजनों के उच्चारण में हवा की मात्रा कम वेग से बाहर निकलती है, उसे अल्पप्राण कहते है। प्रत्येक वर्ग  पहले, तीसरे, पांचवे वर्ण तथा य, र, ल, व अल्पप्राण कहलाते है।
  • महाप्राण –  व्यंजनों के उच्चारण में हवा की मात्रा अधिक वेग से बाहर निकलती है, उसे महाप्राण कहते है प्रत्येक वर्ग के दूसरे, चौथे, वर्ण एवं श, ष, स, ह महा प्राण है।
3. स्वर तंत्रियों में होने वाले कम्पन्न के आधार पर-

अघोष व्यंजन- जिनके उच्चरण में स्वर तन्त्रियो का कम्पन्न होता है, उन्हें अघोष व्यंजन कहते है। उदहारण- क ख च छ ट ठ त थ प फ श ष स अघोष व्यंजन है।

सघोष व्यंजन – जिनके उच्चारण स्वर तंत्रियो में कम्पन्न होता है, उन्हें सघोष व्यंजन कहते है। उदहारण-

  • ग, घ, ङ
  • ज, झ, ञ
  • ड, ढ, ण
  • द, ध, न
  • ब, भ, म
  • य, र, ल, व, ह
कुछ विशेष प्रकार के व्यंजन 

संयुक्त व्यंजनक्ष, त्र, ज्ञ, श्र

आगत व्यंजन – ज़, फ़, ऑ 

उतक्षिप्त व्यंजन – ढ़ 

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