हाल के दिनों में आपने टीवी, समाचार-पत्र, मीडिया, सोशल मीडिया या अपने आस-पास ‘रेडियो रवांडा’ के बारे में अवश्य सुना होगा. आजकल ये चर्चा का विषय बन चुका है. कई लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है. अगर आप नहीं जानते कि रेडियो रवांडा क्या है, तो इस आलेख को पूरा पढ़ें. आगे हम रेडियो रवांडा के बारे में वो सबकुछ बताएंगे, जिसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे.
रेडियो रवांडा’ अफ्रीकी देश रवांडा का एक ऐसा रेडियो चैनल था, जिस पर 1990 के दशक में रवांडा में हुए भीषण नरसंहार का आरोप है. इस नरसंहार में लगभग 8 लाख लोग मारे गए थे. क्यों हुआ था ये नरसंहार? इसमें रेडियो रवांडा की क्या भूमिका थी? क्या था पूरा मामला? फेलिसन काबूगा कौन था? इन सारे प्रश्नों का उत्तर हम आगे आपको इस आलेख में देंगे.
रेडियो रवांडा क्या है?
अफ्रीकी देश रवांडा में 1990 के दशक की शुरुआत में एक नई पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी. वहां के सत्ताधारी दल नेशनल रिपब्लिकन मूवमेंट फॉर डेमोक्रेसी एंड डेवलपमेंट (MRND) ने इंटराहाम्वे नाम से अपना यूथ विंग शुरू किया. कंगूरा नाम की एक नई मैगजीन आई. कंगूरा दो महीने में एक बार छपती थी और बहुत जल्दी ही काफी लोकप्रिय हो गई. इसके बाद जुलाई 1993 में एक रेडियो चैनल आया आया, जिसका नाम था रेडियो टेलीविजन लिब्र देस मिल कोलिन्स (RTLM). इसे ही आगे चलकर ‘रेडियो रवांडा’ नाम से पूरी दुनिया में ख्याति मिली.
प्रथम दृष्टया इंटराहाम्वे, कंगूरा, रेडियो रवांडा (RTLM) इन सब की शुरुआत सामान्य लगती है. पर वास्तव में ये एक सोची-समझी रणनीति के तहत शुरू की गई थी. इसने रवांडा के हुतू और तुत्सी समुदाय के बीच भीषण हिंसा की ऐसी पृष्ठभूमि तैयार की, जिसमें 100 दिनों के अंदर लगभग 8 लाख लोग मारे गए.
फेलिसन काबूगा कौन था? क्यों है आजकल चर्चा में?
इस क्रूर व भीषण नरसंहार की पृष्ठभूमि तैयार करने वाला व्यक्ति था रवांडा का सबसे अमीर आदमी फेलिसन काबूगा. इसने इंटराहाम्वे, कंगूरा और रेडियो रवांडा (RTLM) में खूब पैसा लगाया. नरसंहार के पहले उसने कनाडा की एक कंपनी से छह लाख किलो वजन के चाकू, कुल्हाड़ी और खंजर खरीदे.
कंगूरा मैग्जीन और रेडियो रवांडा के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदाय तुत्सी के खिलाफ प्रोपेगैंडा फैलाए जाते थे. रेडियो रवांडा से “तिलचट्टों को साफ करो” (तुत्सी लोगों को मारो), “तुत्सियों के बच्चे भी तुम्हारे दुश्मन हैं, बड़े होकर वे तुम्हारा ही खून पाएंगे” जैसी नफरत भरी बातों का प्रसारण किया जाता था. इंटराहाम्वे, कंगूरा और रेडियो रवांडा को फाइनेंस करने का काम फेलिसन काबूगा करता था, जो खुद हुतू था.
यह घटनाक्रम सामने आने के बाद दुनियां के कई देशों ने फेलिसन काबूगा को मोस्ट वांटेड अपराधी घोषित किया. अमेरिका ने उसपर 40 करोड़ का इनाम रखा. काफी दिनों तक दुनियां की नजरों से छिपने के बाद मई 2020 में फ्रेंच पुलिस ने उसे पेरिस से गिरफ्तार किया. वह इस समय लगभग 93 वर्ष का है.
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हुतू और तुत्सी के बीच झगड़े की वजह क्या थी?
रवांडा में हुतू बहुसंख्यक समुदाय है, जिसकी आबादी लगभग 85 प्रतिशत है. तुत्सी अल्पसंख्यक होने के बावजूद लंबे समय तक रवांडा पर शासन करते रहे. 1959 में हुतू समुदाय के लोगों ने तुत्सी राजतंत्र को उखाड़ फेंका और तुत्सियों के खिलाफ दंगे शुरू हो गए. इसके बाद हजारों तुत्सी आसपास के देशों में पलायन कर गए. इसी बीच 1987 में तुत्सियों के एक समूह ने रवांडा पैट्रियोटिक फ्रंट (RPF) की स्थापना की. इसका उद्देश्य लड़कर अपने लोगों को उसका अधिकार दिलाना था.
RPF की हिंसात्मक गतिविधियां लगातार बढ़ती जा रही थी, जिसके बाद 1990 में रवांडा के सबसे अमीर आदमी फेलिसन काबूगा ने तुत्सियों को सबक सिखाने का प्लान बनाया. इसी प्लान के तहत इंटराहाम्वे, कंगूरा और रेडियो रवांडा की स्थापना हुई. 6 अप्रैल 1994 की रात तत्कालीन राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना और बुरुंडी के राष्ट्रपति केपरियल नतारयामिरा को ले जा रहे विमान को किगाली (रवांडा) में मार गिराना गया. चूंकि दोनों राष्ट्रपति हुतू समुदाय से आते थे इसलिए आरोप रवांडा पैट्रियोटिक फ्रंट (RPF) पर लगा. इसके बाद पूरे रवांडा में तुत्सियों के खिलाफ दंगे शुरू हो गए. इस दंगे को भड़काने में रेडियो रवांडा ने एक बड़ी भूमिका निभाई.
आशा करता हूं अब आपको रेडियो रवांडा क्या है और यह क्यों चर्चा में है, अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा.