मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में अंतर

अक्सर एग्जाम या किसी भी मौखिक परिक्षण में यह प्रश्न पूछें जाते कि  मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य क्या है, यह हमे सिर्फ  एग्जाम में ही नहीं बल्कि भारत के प्रत्येक नागरिको को जानना जरूरी होता है ,क्यों कि मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे एक दूसरे के पूरक (कॉम्प्लीमेंट) हैं .आज इस लेख में मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य के बारे में विस्तृत जानकारी पायेंगें-

भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है इसमें मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य, निर्देशक सिद्धांत और सरकार के कर्तव्य भी शामिल है . यह वर्ष 1947 में भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता के संविधान सभा के द्वारा तैयार किया गया था, और 26 जनवरी 1950 में लागू किया गया था तब से संविधान में बहुत से संसोधन हुए है। मौलिक अधिकार और कर्तव्य में अंतर जानने से पहले यह दोनों क्या है -तो बने रहिये हमारे इस आर्टिकल में-

मौलिक अधिकार और कर्तव्य में अंतर

मौलिक अधिकार क्या होते है –

यह जनता को प्रदत्त संविधान द्वारा प्राप्त वैसे अधिकार है जो उनके हितो का संरक्षण करते है . भारतीय संविधान में इसका वर्णन भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 के बीच किया गया है। मौलिक अधिकार अमेरिका के संविधान से लिया गया है। सभी अनुच्छेद को मेगनाकार्टा(ब्रिटेन से आई अवधारणा) के नाम से जाना जाता है।

भारतीय सविंधान में मूल रूप से सात मौलिक अधिकार हमें प्रदत्त किये गए थे परन्तु 44वें 1978 द्वारा एक मौलिक अधिकार संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया . वर्तमान में इसे अनुछेद 300 के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया  .जो मौलिक अधिकार नीचे बताये गए है-

  1. समता/समानता का अधिकार अनुच्छेद(14-18) के मध्य
  2. स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद(19-22)के मध्य
  3. शोषण के विरूद्ध अधिकार अनुच्छेद(23-24)के मध्य
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद(25-28)के मध्य
  5. सांस्कृतिक एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार अनुच्छेद(29-30 )
  6. सवेंधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद(32) तक

मौलिक कर्तव्य क्या होते है-

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार के साथ-साथ कुछ मौलिक कर्तव्य भी दिए हुए है जिसे इंलिश में fundamental duties कहा जाता है जिसका पालन करना भारत के हर व्यक्ति की जिम्मेवारी है अब आगे जानेंगे कि मूल कर्त्तव्य क्या है, अर्थ क्या है।

मूल कर्तव्य क्या है– मूल कर्तव्य का आशय संविधान के भाग 4 (A) में नागरिकों के लिए उपलब्ध कराये गये उन कर्तव्यों से है जिनका राज्य एवं समाज के प्रति पालन करना प्राथमिक दायित्व है . भारतीय संविधान में मूल अधिकार के साथ – साथ मूल कर्तव्य को शामिल किया गया है। हालांकि मूल संविधान में मूल कर्तव्य के बारे में नही लिखा गया था लेकिन वर्ष 1975 में जब इंदिरा गांधी के द्वारा आपातकाल लगाया गया तो उसके बाद स्वर्ण सिंह समिति की गठन की गयी समिति के सिफारिस के आधार पर 42वें संविधान 1976 के द्वारा 10 मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया।

इन मूल कर्तव्यों को संविधान के भाग 4 (A) में जोड़ा गया जिसमे की अनुच्छेद 51 (A) के तहत 10 मूल कर्तव्यों को शामिल किया गया। वर्ष 2002 में 86 वें संविधान संशोधन के द्वारा 11 वां मूल कर्तव्य जोड़ा गया। इन मूल कर्तव्यों को पूर्व सोवियत संघ से लिया गया। जो सभी fundamental duties निम्नलिखित प्रकार से है –

  1. संविधान का पालन करना और उसके आदर्श संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें
  2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करें और उच्च आदर्शों को ह्रदय में सजोयें रखे और उनका पालन करें।
  3. भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता की रक्षा करें
  4. देश के रक्षा करें और आवाहन किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
  5. भारत के सभी लोगो में समरसता और सामान भ्रातत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा, और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसे प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरूद्ध हो।
  6. हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करें।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव है, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा दूर रहे।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता (एक्सीलेंस) की दिशा में प्रयास करना।
  11. 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शैक्षिक अवसर प्रदान करना और यह सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता का कर्तव्य होना चाहिए।

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मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में अंतर

मौलिक अधिकार मौलिक कर्तव्य 
मूल मानव अधिकार, प्रत्येक नागरिक के लिए उपलब्ध हैं, चाहे वह किसी भी जाति, जन्म स्थान, धर्म, जाति, पंथ या लिंग का हो। यह देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा के लिए देश के प्रति नागरिकों का नैतिक दायित्व।
यह संविधान के भाग III में मौजूद है। संविधान के भाग IV ए में मौजूद है।
मौलिक अधिकारों की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका से उधार ली गई है। यह अवधारणा यू.एस.एस.आर. से उधार ली गई है।
यह केवल नागरिकों के लिए ही उपलब्ध है लेकिन इनमें से कुछ विदेशियों के लिए भी उपलब्ध हैं। केवल नागरिकों के लिए उपलब्ध और बाध्यकारी हैं।
यह प्रकृति में राजनीतिक और सामाजिक है। प्रकृति में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक।
यह अदालत के समक्ष लागू करने योग्य हैं। अदालत के समक्ष लागू करने योग्य नहीं हैं
अनुच्छेद 12 से 35 मौलिक अधिकारों से संबंधित है। अनुच्छेद 51A मौलिक कर्तव्यों से संबंधित है।
वे सीधे लागू करने योग्य हैं। न्यायालयों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से लागू करने का कोई प्रावधान नहीं है। संसद उपयुक्त कानून के माध्यम से उन्हें लागू कर सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न -FAQ 

मौलिक अधिकार कितने प्रकार के होते है?

मौलिक अधिकार 6 प्रकार के होते है। भारतीय संविधान में इसका वर्णन भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 के बीच किया गया है। 

मौलिक कर्तव्य कितने प्रकार के होते है?

मौलिक कर्तव्य 11 होते है अनुच्छेद 51 (A) के तहत 10 मूल कर्तव्यों को शामिल किया गया। वर्ष 2002 में 86 वें संविधान संशोधन के द्वारा 11 वां मूल कर्तव्य जोड़ा गया।

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