कोयला से बिजली कैसे बनती है? जाने कैसे होता है बिजली उत्पादन

कोयला से बिजली कैसे बनती है: आज हम आपको इस लेख के जरिये बताएँगे कि । electricity बनाने के लिए कोयले को किन किन प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है। वैसे तो bijli और भी कई स्रोतों से बनाई जाती है, परंतु यहाँ हम आपको कोयले से बिजली उत्पादन की जानकारी देंगे।

कोयला से बिजली कैसे बनती है?

  1. कोल यार्ड में कोयला स्टोर करना
  2. क्रशर मशीन में डालकर क्रश करना
  3. पोलराईजर में बारीक पीसना
  4. बॉयलर मे जलाकर भाप बनाना
  5. भाप से टरबाइन चलाना व बिजली बनाना

सबसे पहले आपको बता दें कि हमारा इलेक्ट्रिक पावर प्लांट एक बहुत बड़े एरिए में फैला होता है। इसमें कई खंड होते हैं जहाँ कोयले को अनेक प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है।इलेक्ट्रिक पावर प्लांट काफी लंबे एरिया में फैला होता है। ये एरिया करीब 5-किलोमीटर तक का होता है। इसमें कई यूनिट होती हैं व हर यूनिट का अपना-अपना काम होता है।

इन सभी यूनिट से गुजरते हुए बिजली का उत्पादन किया जाता है। कोयला बिजली उत्पादन के लिए सेकेंडरी साधन होता है इसके अलावा जल,तेल व गैस ऊर्जा भी बिजली उत्पादन में सेकेंडरी साधन होते हैं।

इसे पढ़ें – व्यवसाय कर्ज योजना से लोन कैसे ले सकते हैं?

कोयले से बिजली बनाने की प्रक्रिया-

बिजली बनाने के लिए कोयले को उसकी विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजारने से पहले इलेक्ट्रिक पावर प्लांट में लगभग आगे के 40 दिन के लिए कोयले को स्टोर किया जाता है।कहने का मतलब यह है कि बिजली उत्पादन के लिए 40 दिन के लिए एडवांस कोयला स्टोर किया जाता है नहीं तो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट बंद हो सकता है यदि 40 दिन तक के लिए पर्याप्त कोयला उपलब्ध नहीं है।

स्टेप 1 -कोयला से बिजली कैसे बनती है?

इन इलेक्ट्रिक पावर प्लांट में ट्रेन के जरिए कोयला पहुँचाया जाता है,फिर उसे स्टोर किया जाता है। स्टोर करने का भी अपना एक तरीका होता है। कोयला ट्रेन से उतार दिया जाता है, फिर मशीन द्वारा उठा लिया जाता है और इसे बेल्ट कन्वेयर पर डाल दिया जाता है जिससे कि बहुत आसानी से कोयले को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है।
जैसा कि शुरुआत में हमने बताया है कि बिजली उत्पादन के लिए 40 दिन के लिए कोयला स्टोर किया जाता है। यहां कोयला स्टोर करने के लिए खास व्यवस्था होती है। जहाँ कोयला रखा जाता है उसे कोल यार्ड कहते हैं।

दरअसल कोयले के टुकड़े बहुत बड़े आकार के होते हैं। तो ये यार्ड का बहुत बड़ा हिस्सा घेरते हैं, इन बड़े बड़े टुकड़ों से आगे की प्रक्रिया संभव नहीं है इसलिए कोयले के इन टुकडों को महीन पाउडर में तब्दील किया जाता है। कोयले को पीसने से पहले इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ना जरूरी होता है क्योंकि बिजली बनाने की आगे की प्रक्रिया में कोयले को काम में लाने के लिए उसे महीन पाउडर में तब्दील करना पड़ता है। महीन पाउडर में तब्दील करने से पहले कोयले को क्रशर मशीन में डाला जाता है। क्रशर मशीन में क्रश करके कोयले के बड़े आकार के टुकड़ों को बहुत बहुत छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है। जिससे पीसने में आसानी हो जाती है।

स्टेप 2 –

क्रशर से क्रश करने के बाद कोयले को पोलराईजर मशीन में डाला जाता है। पोलराईजर कोयले को बारीक पीसने का काम करता है। पोलराईजर में कोयला एकदम बारीक,महीन पाउडर की तरह पिसता है, बिल्कुल उस तरह जो हम टेलकम पाउडर इस्तेमाल करते हैं।

इसके बाद बारीक पिसे हुए कोयले को बॉयलर मशीन में ले जाया जाता है। आपको बता दें कि जब पिसे कोयले को बॉयलर में डाला जाता है तो जो कोयले का मोटा कण होता है वो बॉयलर के नीचे जाकर बैठ जाता है और कोयले की गंदगी नीचे चली जाती है, व जो महीन कण होते हैं वो फ्लाई ऐश मतलब उड़ती हुई धूल की तरह ऊपर उड़कर निकल जाता है जो धुएँ के रूप में बाहर निकल जाता है।

इसे पढ़ें – राजस्थान में श्रमिक कार्ड कैसे बनाया जाता है?

स्टेप 3 –

बॉयलर में प्री हीटेड एअर भेजी जाती है जिससे कि कोयले की नमी खत्म हो जाए और कोयला अच्छे से जल जाए। बॉयलर में पाईप के रास्ते पानी आता है, इस पानी के जरिए जो बॉटम ऐश (राख) होते हैं वो नीचे बैठ जाते हैं और जो फ्लाई ऐश होते हैं वो ऊपर उड़ जाते हैं। और ये ऊपर उड़कर, ऊपर बॉयलर में जो ट्यूब लगा होता है उसको गर्म कर देता है, इस ट्यूब में पानी भरा होता है जिसमें भाप बनती है।

पानी की ये ट्यूब्स बहुत ज्यादा हीटेड होती हैं जिससे बहुत ज्यादा हीट हो जाती है और बहुत ही अधिक मात्रा में स्टीम (भाप) उत्पन्न हो जाती है। जो राख नीचे की ओर जाती है उसको एक कंपन करती हुई जाली से चाल लिया जाता है और ये राख स्टोर कर ली जाती है तथा सीमेंट कंपनियों को दे दी जाती है। इससे सीमेंट का उत्पादन होता है, इसे फ्लाई ऐश सीमेंट कहते हैं। और जो फ्लाई ऐश ऊपर उड़कर जाती है उसे बाकायदा ट्रीट करके ही हवा में छोड़ा जाता है क्योंकि ये फ्लाई ऐश जो राख होती है यदि हम इसे ऐसे ही हवा में छोड़ देंगे तो पर्यावरण को प्रदूषित करेगा व लोगों के फेफड़ों को भी नुकसान पहुँचाएगा।

इसलिए इस राख को निकालने से पहले ही जहाँ से फ्लाई ऐश बाहर निकलती है वहाँ पर इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर लगा दिया जाता है राख में जो कण होते हैं वे प्रेसिपिटेटर में ही चिपक जाते हैं और यह हवा चिमनी के द्वारा बाहर निकाल दी जाती है जो अब पूरी तरह से नुकसान रहित होती है अर्थात लोगों को नुकसान नहीं पहुँचा पाती है।

स्टेप 4 –

बॉयलर में कोयले के द्वारा जो आग जलती है, उसे हम फ्लू गैसेस कहते हैं। ये फ्लू गैसेस बॉयलर में लगे टैंक को गर्म कर देती हैं जिसमें पानी भरा हुआ होता है और यह वास्तव में टंकी नहीं होती है बल्कि इसमें पाईप लगे होते हैं जिसमें पानी भरा होता है और ये पानी सुपर हीटेड हो जाता है।

बॉयलर के ऊपर छोटे छोटे पाईप लगे होते हैं, ये एक दूसरे से बिल्कुल भी टच नहीं होते हैं और इनके चारों तरफ आग जलने से ये बहुत हीट हो जाते हैं व ये जो पानी पाईपों में भरा होता है, इसको बॉयलर से सटाकर पाईप के माध्यम से बॉयलर के ऊपर ले जाया जाता है कि ये पहले ही गर्म हो जाए। भट्टी के पास से जो पाईप गुजारा जाता है वहाँ पर इकोनोमाईजर लगा होता है और यही पानी को गर्म कर देता है। जिससे भाप बनने लगती है और अब इसको ले जाकर टरबाइन को घुमाया जाता है तथा बिजली उत्पन्न हो जाती है।

इसे पढ़ें – आंगनबाड़ी समाचार उत्तर प्रदेश लखनऊ

टरबाइन क्या है? –

टरबाइन एक तरह का अनेक पंखों व पंखुड़ियों का एक समूह होता है और ये कई प्रकार के होते हैं―

  1. हाई प्रेशर टरबाइन (High Pressure Turbine)
  2. इंटरमीडिएट प्रेशर टरबाइन (Intermediate Pressure Turbine)
  3. लो प्रेशर टरबाइन (Low Pressure Turbine)

जब हाई प्रेशर भाप टरबाइन पर डाला जाता है तो जो हिस्सा शुरुआत में पड़ता है टरबाइन का,उसे हाई प्रेशर टरबाइन कहते हैं तथा जब ये भाप ठंडी होकर आगे बढ़ती है तो ये इंटरमीडिएट प्रेशर टरबाइन होता है और जब ये भाप और ज्यादा ठंडी होकर आगे पहुँचती है तो ये लो प्रेशर टरबाइन कहलाता है और यही टरबाइन इलेक्ट्रिक पावर प्लांट का हृदय होता है,, बिना इसके पावर प्लांट का कोई अस्तित्व नहीं होता है।

बॉयलर में जो कोयला जला रहे थे उसका उपयोग इसी हाई प्रेशर की भाप को बनाने में कर रहे थे और इस हाई प्रेशर की भाप से टरबाइन को चलाने के लिए ही बॉयलर में कोयला जलाया जाता है। जब टरबाइन पर हाई प्रेशर भाप पड़ती है तो टरबाइन बहुत तेजी से घूमता है और टरबाइन से जुड़ा जनरेटर चलने लगता है व बिजली उत्पन्न हो जाती है।

किसी भी पावर प्लांट में मुख्य काम होता है टरबाइन का। टरबाइन से जनरेटर का साफ्ट जुड़ा होता है और जब ये साफ्ट घूमता है तो जनरेटर चलने लगता है व बिजली पैदा हो जाती है।

इस प्रकार हमने स्टेप वाई स्टेप आपको वो पूरी प्रक्रिया बताई व समझाई है कि कोयले से बिजली उत्पादन कैसे होता है।

Leave a Comment